रिश्तों के बदलते स्वरूप -30-Jun-2022
रिश्तों के बदलते स्वरूप
आजकल देखने में आता है कि रिश्ते स्वार्थ की बुनियाद पर टिके होते हैं और कई बार ऐसा लगता है कि रिश्ते मजबूरी में औपचारिक रूप से निभाए जा रहे हैं। रिश्तों में जरूरत और अपनेपन की गरमाहट समाप्त हो गई है। सब अपने-अपने स्वार्थ साधने में लगे हैं। परिस्थितियां शायद पहले जैसी नहीं रह गई हैं। पहले घर के बड़े बेटे पर पिता के बाद की सारी जिम्मेदारी मानी जाती थी। बहन-भाइयों को पढ़ाने-लिखाने से लेकर उनके शादी-विवाह तक की सारी भूमिका आमतौर पर वही निभाता था। पिता की मौत के बाद बड़े बेटे को बाकायदा पगड़ी बांध कर कहा जाता था कि अब पिता की जिम्मेदारी भी तुम्हें ही निभानी है। लेकिन आज हालात बदल गए हैं। पहले की तरह संयुक्त परिवार नहीं रह गए हैं। आज परिस्थितिवश छोटे या फिर एकल परिवारों का चलन बढ़ गया है। पहले परिवार बड़ा होता था। किसी भी दंपति के पांच-छह बच्चे होना सामान्य बात होती थी। लेकिन आज के दंपति एक या दो से अधिक बच्चे भी नहीं चाहते जो आज के समय के अनुसार उचित ही है। कमजोर परिवारों में भी आजीविका के साधन कम थे, लेकिन रोजी-रोटी के लिए अधिक हाथ-पैर मारने की जरूरत नहीं होती थी। संयुक्त परिवार होने की वजह से सभी काम मिल-बांट कर कर लिए जाते थे। पहले लोगों के पास समय अधिक होता था। आवागमन के इतने साधन नहीं होते थे। अगर कोई भाई अपनी बहन के यहां जाता था तो कुछ दिन उसे वहीं रहना पड़ता था।नहीं तो बहन-बहनोई बुरा मान जाते थे। उसमें जरूरत कम, और संबंधों की संवेदना ज्यादा थी।लेकिन आज गांव और शहर दोनों में ही संबंधों के संदर्भ बदल गए हैं। आबादी बढ़ने के साथ गांव में भी गुजारा करना मुश्किल हो गया तो लोग शहरों की तरफ रोजी-रोटी की तलाश में निकले। शहरों में लोग अपना मकान कम ही बना पाते हैं, इसलिए किराएदारों की संख्या अधिक होती है। घर के नाम पर भी अधिकतर लोगों के पास एक कमरे होते हैं।कुछ लोग अपनी जमीन पर एक ही कमरे के घर दो-तीन या चार मंजिलों के बना लेते हैं और उसमें अगर माता-पिता को जगह मिल सकी तो ठीक, वरना वे उसे किराए पर लगा देते हैं। अगर कोई रिश्तेदार उनके यहां आ जाता है तो चाय और खाने तक तो लोग निभा लेते हैं। लेकिन उन्हें अपने पास रुकने के लिए अधिक दबाव नहीं देते। औपचारिकतावश भले ही पूछ लें कि ‘रुक जाइए, कल चले जाइएगा ! आजकल शहरों की व्यस्त दिनचर्या में रिश्तेदारों के पास रुकने का वक्त कम ही होता है। यही वजह है कि आजकल लोग जन्म-मृत्यु या शादी-विवाह जैसे खास मौकों पर ही मिल पाते हैं। दरअसल, आज की जिंदगी भी इतनी भागमभाग वाली हो गई है कि लोगों के पास समय नहीं होता। अपने परिवार को आधुनिकतम सुविधाएं मुहैया कराने के लिए दंपति खुद कमाने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। नतीजतन टीवी, फ्रिज, लैपटॉप, फोन, मोटरसाइकिल, कार, वाशिंग मशीन और एसी जैसी सुविधाएं अब मध्यमवर्ग की पहुंच में हो गई हैं, भले ही इसके लिए उसे किस्तों के कर्ज में क्यों ना फंसना पड़े ? जिसे चुकाने के लिए उसे पैसे कमाने में खुद को झोंकना पड़ता है। नतीजतन, उसके पास अपने रिश्तेदारों के लिए समय नहीं होता। हकीकत तो यह है कि उसके पास खुद के लिए भी समय नहीं होता। अगर कभी छुट्टी जैसी राहत रही तो उस दिन को वह टीवी के सामने बिता देता है। रिश्ते-नाते, दोस्तों से मिलने को वह गैर-महत्त्व का काम मानने लगता है और मुलाकातें सिर्फ जरूरत के काम तक सिमट कर रह जाती हैं। परिणाम यह हो रहा है कि रिश्ते निभाना एक औपचारिकता बनती जा रही है। दूसरी ओर, हमारा मध्यम वर्ग या निम्न मध्यम वर्ग ऐसा भी है, जिनके पास कम्प्यूटर, लैपटॉप या स्मार्ट फोन हैं। वे इंटरनेट यानी सोशल वेबसाइटों के जरिए नए-नए रिश्ते बना रहे हैं। हो भी क्यों ना जब आजकल फेसबुक, व्हाट्सऐप और ट्विटर का जो जमाना है। ऐसे में नए दोस्त बनाने की जगहें वही होती जा रही हैं। कुछ बातें जो हम प्रत्यक्ष रूप में अपने मित्रों से कह नहीं सकते, ये साधन उन बातों को भी परोक्ष रूप से मित्रों तक पहुँचा देते हैं। परिणामस्वरूप कई बार इनमें बहुत ही अच्छे दोस्त बन जाते हैं व रिश्ते भी कायम हो जाते हैं और हमें आभास होता है कि रिश्ते खून के ही नहीं होते, बल्कि व्यवहार से भी बनाए जाते हैं। यह बात भी सच है कि हमारे अच्छे व्यवहार से कई अच्छे दोस्त बन जाते हैं। कई बार और कई जगह हमारे खून के रिश्ते काम नहीं आते, पर ये मित्र हमारी हर परेशानी में हमारे साथ होते हैं। यह इंटरनेट की दुनिया का सकारात्मक पक्ष है। हालांकि इससे इंटरनेट के नकारात्मक पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद मेरा मानना है कि रिश्ते स्वार्थ पर नहीं, बल्कि प्यार, विश्वास और अपनेपन पर टिके होने चाहिए। यही रिश्ते अगर हमारी भावनाओं के करीब आ जाते हैं तो वे एक दूसरे के पूरक और जरूरत भी बन जाते हैं।
प्रिया पाण्डेय "रोशनी"
🤫
09-Jul-2022 01:17 PM
Badhiya
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Raziya bano
30-Jun-2022 12:16 PM
Bahut khub
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Gunjan Kamal
30-Jun-2022 11:50 AM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻
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